GST on outsourced employees in UP: मामला आउटसोर्स कर्मचारियों के मानदेय पर जीएसटी लगाने का है। जानकारी यह है कि सेवा प्रदाता कंपनियां (सर्विस प्रोवाइडर फर्म्स) विभिन्न विभागों और निगमों से आउटसोर्स कर्मचारियों के वेतन (मानदेय) पर 18 प्रतिशत की दर से जीएसटी वसूल रही हैं, जबकि नियमों के मुताबिक मानदेय पर जीएसटी लागू ही नहीं होता।
इसके अलावा, इन कर्मचारियों की ईपीएफ और ईएसआई जैसी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के अंशदान पर भी जीएसटी लिया जा रहा है, जो कि पूरी तरह से गैर-कानूनी है।
अधिकारियों का मानना है कि प्रदेश के अधिकांश विभागों जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, नगर निगमों आदि में यही चलन है। प्रदेश में करीब चार लाख से ज्यादा आउटसोर्स कर्मचारी हैं और हर साल इनके मानदेय पर सरकार का 400 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च होता है। अगर इतनी बड़ी राशि पर गलत तरीके से जीएसटी वसूला जा रहा है, तो यह एक विशाल आर्थिक धोखाधड़ी का मामला बनता है।
क्या है पूरा मामला? समझिए आसान भाषा में
मौजूदा विवाद इसी भुगतान के ‘कर’ वाले हिस्से को लेकर है। सेवा प्रदाता कंपनियां विभाग से कर्मचारियों के मानदेय (सैलरी कंपोनेंट) पर भी 18% जीएसटी वसूल रही हैं।
सरकारी विभागों में स्थायी पदों पर भर्ती प्रक्रिया लंबी होने के कारण, काम चलाने के लिए आउटसोर्सिंग का सहारा लिया जाता है। इसके तहत, सरकार एक तीसरी पार्टी की कंपनी (सर्विस प्रोवाइडर) के साथ अनुबंध करती है।
कंपनी डाटा एंट्री ऑपरेटर, सिक्योरिटी गार्ड, सफाई कर्मचारी, नर्स, टेक्निशियन जैसे कर्मचारी उपलब्ध कराती है। सरकारी विभाग, कंपनी को इन कर्मचारियों के कुल वेतन, प्रबंधन शुल्क और लागू करों का भुगतान एकमुश्त करता है। फिर कंपनी अपने हिसाब से कर्मचारियों को वेतन देती है।
दावा किया जा रहा है कि यह गलत है क्योंकि GST on outsourced employees in UP या कहीं और, किसी भी कर्मचारी के वेतन पर जीएसटी लागू नहीं होता। वेतन को ‘सर्विस’ नहीं, बल्कि ‘श्रम के बदले मेहनताना’ माना जाता है, जो जीएसटी के दायरे से बाहर है। जीएसटी सिर्फ कंपनी द्वारा लिए जाने वाले ‘मैनपावर सप्लाई’ या ‘स्टाफिंग सर्विसेज’ के प्रबंधन शुल्क पर ही लगता है।
EPF-ESI पर भी जीएसटी! कानून की साफ अवहेलना
इस पूरे मामले का सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि इन आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए जमा किए जाने वाले भविष्य निधि (ईपीएफ) और Employees’ State Insurance Corporation (ईएसआईसी) के अंशदान पर भी 18% की दर से जीएसटी लिया जा रहा है। यह सीधे-सीधे जीएसटी काउंसिल के नियमों की धज्जियां उड़ाने जैसा है।
जीएसटी काउंसिल की 18 जून, 2017 की एक अधिसूचना में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ईपीएफ और ईएसआईसी जैसे सामाजिक सुरक्षा कोषों में किए जाने वाले योगदान पर कर की दर शून्य (0%) है। इसका मतलब है कि इन पर जीएसटी लगाना ही नहीं चाहिए।
सेवा प्रदाता कंपनियों द्वारा विभागों से ईपीएफ/ईएसआई के अंशदान के नाम पर अलग से जीएसटी वसूलना एक गंभीर वित्तीय अनियमितता है। यह न केवल सरकारी खजाने से गैर-कानूनी राशि लेने जैसा है, बल्कि इससे कर्मचारियों के भविष्य के लिए जमा होने वाली रकम पर भी असर पड़ सकता है।

PWD के इनवॉइस से खुला राज, अब अन्य विभागों में हो रही जांच
यह पूरा मामला तब उजागर हुआ जब लोक निर्माण विभाग (PWD) में किसी सजग अधिकारी की नजर सेवा प्रदाता कंपनियों द्वारा जारी किए गए टैक्स इनवॉइस (कर प्रपत्रों) पर पड़ी।
इन इनवॉइस में साफ-साफ मानदेय और ईपीएफ/ईएसआई के अंशदान के लिए अलग से 18% जीएसटी चार्ज दिखाया गया था। PWD ने इसकी जानकारी ऊपर के स्तर तक पहुंचाई और मामले की गंभीरता को देखते हुए शासन के संबंधित अधिकारियों को अवगत कराया गया।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “अगर इस मामले की गहन जांच होती है तो एक बहुत बड़ा घपला सामने आ सकता है। यह सिर्फ PWD तक सीमित नहीं है, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा, ऊर्जा और नगर निकायों जैसे विभागों में भी ऐसा ही हो रहा होगा।”
कैसे होता है घपला? रिफंड और समायोजन का खेल
सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर यह घपला कैसे काम करता है? जानकारों के मुताबिक, इसके दो मुख्य तरीके हो सकते हैं:
- सीधा गबन: पहला तरीका तो यह हो सकता है कि कंपनियां विभागों से मानदेय पर जीएसटी के नाम पर अतिरिक्त राशि तो वसूल लेती हों, लेकिन इसे सरकारी खजाने में जीएसटी के रूप में जमा ही न करती हों। यानी, यह राशि सीधे उनकी अतिरिक्त आय बन जाती हो। यह सीधे धोखाधड़ी और गबन की श्रेणी में आता है।
- रिफंड या समायोजन का घपला: दूसरा और अधिक परिष्कृत तरीका यह हो सकता है कि कंपनियां इस राशि को जीएसटी के रूप में जमा करा देती हों, लेकिन बाद में इसे ‘रिफंड’ (वापसी) के रूप में हासिल कर लेती हों या फिर अपनी अन्य कर देयताओं के खिलाफ ‘समायोजित’ (adjust) करा लेती हों। उदाहरण के लिए, अगर किसी कंपनी ने विभाग से मानदेय पर 10 लाख रुपये का GST लिया है और उसे जमा कराया है, लेकिन उसकी अन्य व्यावसायिक गतिविधियों में कोई कर देनदारी नहीं बनती, तो वह इस जमा किए गए जीएसटी की वापसी का दावा कर सकती है। चूंकि यह जीएसT गलत तरीके से वसूला गया था, इसलिए इसका रिफंड लेना भी गैर-कानूनी होगा। इसकी जांच करना बेहद जरूरी है कि कंपनियों ने इस तरह के कितने रिफंड के दावे किए हैं।
शासन की क्या होगी कार्रवाई? ‘जांच का आश्वासन’
मामला सामने आने के बाद शासन-प्रशासन हरकत में आया है। राज्य कर विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मीडिया से बातचीत में कहा है कि इस गंभीर मामले की जांच कराई जाएगी। जांच के दायरे में यह देखा जाएगा कि किन-किन विभागों और कंपनियों ने इस तरह की गलत बिलिंग की है और कितनी राशि का गबन या गलत दावा किया गया है।
हालांकि, विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि इतने बड़े पैमाने पर हो रही यह अनियमितता बिना अधिकारियों की सहमति के संभव नहीं है।
उनका मांग है कि जांच किसी उच्चस्तरीय समिति या स्वतंत्र एजेंसी द्वारा कराई जाए, ताकि दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिल सके और गबन की गई राशि वसूल की जा सके। उनका यह भी कहना है कि सरकार को तुरंत एक सर्कुलर जारी कर सभी विभागों को निर्देश देना चाहिए कि वे आउटसोर्स कर्मचारियों के मानदेय पर जीएसटी नहीं दें।

GST on outsourced employees in UP: सवाल पारदर्शिता और जवाबदेही का
उत्तर प्रदेश में GST on outsourced employees in UP का यह मामला सरकारी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही के गंभीर सवाल खड़े करता है। एक तरफ सरकार ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ को बढ़ावा देने की बात करती है, वहीं दूसरी तरफ सरकारी खरीद और अनुबंधों में इस तरह के घपले लगातार सामने आ रहे हैं।
इस घटना से यह भी पता चलता है कि सरकारी विभागों में वित्तीय अनुशासन की कितनी कमी है और कैसे नियमों की जानकारी के अभाव में या जानबूझकर, बड़ी रकम का गबन संभव है।
अब नजर सरकार की ओर है कि वह इस मामले में कितनी गंभीरता दिखाती है। क्या दोषी कंपनियों और अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी? क्या सरकारी खजाने के गए करोड़ों रुपये वापस होंगे? और क्या भविष्य में इस तरह के घपलों को रोकने के लिए कोई ठोस व्यवस्था की जाएगी?
इन सवालों के जवाब ही तय करेंगे कि उत्तर प्रदेश में सुशासन का दावा कितना मजबूत है। प्रदेश के लाखों आउटसोर्स कर्मचारी और आम जनता एक न्यायसंगत और पारदर्शी कार्रवाई की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह समाचार पोस्ट विभिन्न सूत्रों, मीडिया रिपोर्ट्स और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध दस्तावेजों पर आधारित एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट है। इसे सूचनात्मक और जनजागरूकता के उद्देश्य से तैयार किया गया है। पाठकों से अनुरोध है कि इस मामले की आधिकारिक जानकारी के लिए संबंध सरकारी विभागों या भरोसेमंद समाचार स्रोतों द्वारा जारी किए गए बयानों का इंतजार करें।